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    Home»Best Song Lyrics»Karpur Gauram Karunavtaram Lyrics | कर्पूरगौरं करुणावतारं
    Best Song Lyrics

    Karpur Gauram Karunavtaram Lyrics | कर्पूरगौरं करुणावतारं

    Lyrics Note TeamBy Lyrics Note TeamAugust 25, 2024Updated:August 25, 2024No Comments2 Views
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    Karpur Gauram Karunavtaram Lyrics: करपुर गौरं करुणावतारं एक प्रसिद्ध श्लोक है जो शिव जी की स्तुति में गाया जाता है। हिंदू सनातन धर्म में पूजा के समय मंत्र उच्चारण करने का विशेष महत्व होता है। वेद एवं शास्त्रो में भी देवी-देवताओं की पूजा में मंत्रों के उच्चारण का उल्लेख किया गया है। मंत्र, श्लोक एवं जाप करने या उच्चारण करने का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। मंत्र जाप करते समय शरीर में एक प्रकार का पवित्र कंपन उत्पन्न होता है, जिससे हमारे शरीर में आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह होता है। हिंदू धर्म में सभी प्रकार के मांगलिक अनुष्ठान मंत्रोच्चारण के साथ ही संपन्न किये जाते है। मंदिरों में प्रतिदिन होने वाले पूजा में आरती के पश्चात कुछ विशेष मंत्रो का उच्चारण किया जाता है। जिस मंत्र के उच्चारण के बिना पूजा पूर्ण नही मानी जाती है। अतः इस मंत्र का उच्चारण आवश्यक रुप से किया जाता है।

    यह श्लोक भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है और अक्सर इसे पूजा, आरती, और ध्यान के समय गाया जाता है। इस श्लोक के माध्यम से भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया जाता है। आइए इस श्लोक के बारे में विस्तार से जानते हैं।

    Karpur Gauram Karunavtaram Lyrics

    कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
    सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।

    “मंगलम भगवान् विष्णु,
    मंगलम गरुड़ध्वजः ।
    मंगलम पुन्डरी काक्षो,
    मंगलायतनो हरि ।।”

    सर्व मंगल मांग्लयै शिवे सर्वार्थ साधिके ।
    शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।

    त्वमेव माता च पिता त्वमेव
    त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव
    त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
    त्वमेव सर्वं मम देव देव

    कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा
    बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात
    करोमि यध्य्त सकलं परस्मै
    नारायणायेति समर्पयामि ।।

    श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव ।
    जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव
    गोविन्द दामोदर माधवेती ।।

    करपुर गौरं करुणावतारं
    संसार सारं भुजगेन्द्र हारम् ।
    सदा वसन्तं हृदयारविन्दे
    भवं भवानी सहितं नमामि ।।

    Karpur Gauram Karunavtaram Lyrics with Meaning

    धार्मिक श्लोक और मंत्र हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे न केवल हमारे मन को शांति और स्थिरता प्रदान करते हैं, बल्कि हमें ईश्वर के प्रति गहरे समर्पण और श्रद्धा की भावना से भी जोड़ते हैं। इस पोस्ट में, हम कुछ प्रमुख श्लोकों का विश्लेषण करेंगे, जिनका उपयोग भक्त अपने दैनिक जीवन में पूजा, ध्यान, और आत्मिक उन्नति के लिए करते हैं। इन श्लोकों का सही अर्थ और महत्व जानकर, हम अपने जीवन को और भी अधिक पवित्र और सकारात्मक बना सकते हैं। आइए, इन दिव्य श्लोकों के माध्यम से भगवान की महिमा और उनकी अनंत कृपा का अनुभव करें।

    करपुर गौरं करुणावतारं: श्लोक के बोल और अर्थ

    करपुर गौरं करुणावतारं एक प्रसिद्ध श्लोक है जो शिव जी की स्तुति में गाया जाता है। यह श्लोक भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है और अक्सर इसे पूजा, आरती, और ध्यान के समय गाया जाता है। इस श्लोक के माध्यम से भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया जाता है। आइए इस श्लोक के बारे में विस्तार से जानते हैं।

    श्लोक के बोल:

    करपुर गौरं करुणावतारं
    संसार सारं भुजगेन्द्र हारम् ।
    सदा वसन्तं हृदयारविन्दे
    भवं भवानी सहितं नमामि ।।

    श्लोक का अर्थ:

    1. करपुर गौरं:
      इस पंक्ति में भगवान शिव की तुलना कपूर के समान गोरे या श्वेत रंग से की गई है। कपूर का रंग शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है, जो भगवान शिव के दिव्य स्वरूप का वर्णन करता है।
    2. करुणावतारं:
      शिव जी को करुणा का अवतार माना जाता है। वे सभी जीवों के प्रति दया और करुणा का प्रतीक हैं। उनके इस गुण की प्रशंसा करते हुए, उन्हें करुणावतार कहा गया है।
    3. संसार सारं:
      शिव जी को इस संसार का सार बताया गया है। वे इस संसार की उत्पत्ति, स्थिति, और संहार के कारण हैं। संसार में जो कुछ भी है, उसका मूल शिव हैं।
    4. भुजगेन्द्र हारम्:
      इस पंक्ति में शिव जी के गले में सर्प को हार के रूप में धारण करने का वर्णन किया गया है। यह उनके अहिंसक स्वभाव और साहस का प्रतीक है।
    5. सदा वसन्तं हृदयारविन्दे:
      शिव जी को हृदय के कमल में हमेशा विराजमान रहने वाला कहा गया है। यह पंक्ति इस बात का प्रतीक है कि भगवान शिव भक्तों के हृदय में हमेशा निवास करते हैं।
    6. भवं भवानी सहितं नमामि:
      शिव और पार्वती (भवानी) की संयुक्त रूप से वंदना की जाती है। इस पंक्ति के माध्यम से भक्त शिव और पार्वती दोनों को प्रणाम करते हैं।

    श्लोक के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

    • ध्यान और साधना:
      इस श्लोक का उच्चारण ध्यान और साधना के समय किया जाता है। इसके गायन से मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
    • पूजा-अर्चना में प्रयोग:
      करपुर गौरम श्लोक को शिव पूजा के समय प्रमुखता से गाया जाता है। इसे शिव की महिमा का गुणगान करने के लिए अर्पित किया जाता है।
    • कर्मकांड और रिवाज:
      इस श्लोक का उपयोग विभिन्न धार्मिक रिवाजों और कर्मकांडों में भी किया जाता है। यह श्लोक विवाह, नामकरण, और अन्य शुभ अवसरों पर भी गाया जाता है।
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    समापन:

    करपुर गौरं करुणावतारं श्लोक शिव जी की महिमा और उनकी दयालुता को दर्शाता है। यह श्लोक भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण साधना का हिस्सा है और इसके गायन से मन और आत्मा को शांति मिलती है। शिव जी के इस श्लोक का अर्थ समझकर, आप उनकी स्तुति और भक्ति में और भी गहराई से डूब सकते हैं।

    “मंगलम भगवान् विष्णु” श्लोक का अर्थ और महत्व

    यह श्लोक भगवान विष्णु की स्तुति और उनकी मंगलमय शक्ति का गुणगान करता है। इस श्लोक का उपयोग मुख्य रूप से शुभ कार्यों की शुरुआत में किया जाता है, ताकि भगवान विष्णु की कृपा से कार्य सफल और शुभ हो।

    श्लोक के बोल:

    “मंगलम भगवान् विष्णु,
    मंगलम गरुड़ध्वजः ।
    मंगलम पुन्डरी काक्षो,
    मंगलायतनो हरि ।।”

    श्लोक का अर्थ:

    1. मंगलम भगवान् विष्णु:
      भगवान विष्णु स्वयं ही मंगल (शुभ) का प्रतीक हैं। इस पंक्ति में कहा गया है कि भगवान विष्णु का आशीर्वाद हमेशा शुभ और मंगलमय होता है।
    2. मंगलम गरुड़ध्वजः:
      गरुड़ध्वज का अर्थ है गरुड़ को ध्वज (झंडे) के रूप में धारण करने वाले, जो कि भगवान विष्णु का एक नाम है। यह पंक्ति बताती है कि गरुड़ को ध्वज के रूप में धारण करने वाले भगवान विष्णु स्वयं ही शुभता और मंगल का स्रोत हैं।
    3. मंगलम पुन्डरी काक्षो:
      पुंडरीकाक्ष का अर्थ है “कमल के समान नेत्र वाले,” जो भगवान विष्णु का एक और नाम है। यहां यह कहा गया है कि उनके नेत्रों की सौम्यता और दिव्यता भी शुभता का प्रतीक है।
    4. मंगलायतनो हरि:
      हरि का अर्थ है “विष्णु,” और मंगलायतन का अर्थ है “शुभता का निवास स्थान।” इस पंक्ति में भगवान हरि को शुभता का निवास स्थान बताया गया है, जिनकी कृपा से सब कुछ शुभ हो जाता है।

    धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

    • शुभ कार्यों की शुरुआत:
      इस श्लोक का उच्चारण किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में किया जाता है, ताकि भगवान विष्णु की कृपा से कार्य में सफलता और शुभता बनी रहे।
    • पूजा और आरती:
      विष्णु की पूजा और आरती के समय इस श्लोक का गायन किया जाता है। यह भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक माध्यम है।
    • शांति और समृद्धि:
      इस श्लोक का नियमित उच्चारण करने से घर में शांति और समृद्धि का वास होता है। इसे एक प्रकार का मंगलाचरण माना जाता है जो जीवन में शुभता लाता है।

    समापन:

    “मंगलम भगवान् विष्णु” श्लोक भगवान विष्णु की महिमा और उनकी मंगलमय शक्ति को दर्शाता है। इसका अर्थ समझने के बाद, इसका उच्चारण और भी प्रभावी और फलदायी हो सकता है। इस श्लोक के माध्यम से हम भगवान विष्णु से जीवन में शुभता, शांति, और समृद्धि की कामना करते हैं।

    “सर्व मंगल मांग्लयै” श्लोक का अर्थ और महत्व

    “सर्व मंगल मांग्लयै” श्लोक देवी दुर्गा की स्तुति में गाया जाता है। इस श्लोक में देवी को सभी शुभताओं की स्रोत, समस्त कार्यों को सफल बनाने वाली, और शरणागत की रक्षा करने वाली कहा गया है। यह श्लोक विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान और देवी पूजा के समय गाया जाता है।

    श्लोक के बोल:

    सर्व मंगल मांग्लयै शिवे सर्वार्थ साधिके ।
    शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।

    श्लोक का अर्थ:

    1. सर्व मंगल मांग्लयै:
      इस पंक्ति में देवी को सभी प्रकार के मंगल (शुभ) की देवी कहा गया है। वे सभी शुभताओं की स्रोत हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।
    2. शिवे सर्वार्थ साधिके:
      देवी शिवा (शिव की शक्ति) को कहा गया है, जो सभी कार्यों को सफल बनाने वाली हैं। वे संसार के सभी अर्थों (लक्ष्यों) को साधने वाली हैं और उनके आशीर्वाद से सभी कार्य सफल होते हैं।
    3. शरण्ये त्रयम्बके:
      इस पंक्ति में देवी को त्रयम्बके (तीन नेत्रों वाली) और शरणागतों की रक्षा करने वाली कहा गया है। त्रयम्बके का अर्थ है कि देवी सभी दिशाओं में दृष्टि रखने वाली हैं और शरण में आए हुए भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करती हैं।
    4. गौरी नारायणी नमोस्तुते:
      देवी गौरी (पार्वती) और नारायणी (श्री विष्णु की शक्ति) को प्रणाम किया गया है। ये दोनों ही रूप शक्ति और शक्ति के सृजनात्मक और पालनकारी गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

    धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

    • नवरात्रि और दुर्गा पूजा:
      इस श्लोक का गायन विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान और दुर्गा पूजा में किया जाता है। यह श्लोक देवी की महिमा का वर्णन करता है और उनकी कृपा प्राप्त करने का एक माध्यम है।
    • शांति और सुरक्षा:
      इस श्लोक का उच्चारण करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, सुरक्षा, और समृद्धि बनी रहती है। देवी की शरण में जाने से सभी कष्ट दूर होते हैं।
    • सभी कार्यों की सफलता:
      देवी को सर्वार्थ साधिके कहा गया है, यानी जो सभी कार्यों को सफल बनाती हैं। इसलिए इस श्लोक का उच्चारण करने से जीवन के सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
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    समापन:

    “सर्व मंगल मांग्लयै” श्लोक देवी दुर्गा की महिमा और उनकी अद्भुत शक्तियों का गुणगान करता है। इसका नियमित उच्चारण जीवन में शुभता, शांति, और सफलता लाने में सहायक होता है। इस श्लोक का अर्थ समझकर और श्रद्धा से इसका गायन करने से देवी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।

    “त्वमेव माता च पिता त्वमेव” श्लोक का अर्थ और महत्व

    “त्वमेव माता च पिता त्वमेव” एक लोकप्रिय श्लोक है, जो भगवान की सर्वव्यापकता और उनके प्रति भक्त की पूर्ण समर्पण को दर्शाता है। इस श्लोक में, भक्त भगवान को अपने माता, पिता, मित्र, और गुरु के रूप में स्वीकार करता है, जो जीवन की हर आवश्यकता को पूरा करते हैं।

    श्लोक के बोल:

    त्वमेव माता च पिता त्वमेव
    त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव
    त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
    त्वमेव सर्वं मम देव देव

    श्लोक का अर्थ:

    1. त्वमेव माता च पिता त्वमेव:
      इस पंक्ति में भक्त भगवान से कहता है, “आप ही मेरी माता और पिता हैं।” भगवान को माता-पिता के रूप में स्वीकार करते हुए, भक्त इस बात को मानता है कि भगवान ही उसकी देखभाल और पालन-पोषण करने वाले हैं।
    2. त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव:
      यहां भक्त भगवान को अपना बंधु (भाई) और सखा (मित्र) कहता है। यह पंक्ति भगवान के प्रति गहरे प्रेम और विश्वास को दर्शाती है, जैसे कि भगवान ही जीवन के हर संबंध में सबसे महत्वपूर्ण हैं।
    3. त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव:
      इस पंक्ति में भगवान को विद्या (ज्ञान) और द्रविण (धन) का स्रोत कहा गया है। भक्त मानता है कि जो भी ज्ञान, संपत्ति या वैभव उसके पास है, वह सब भगवान की कृपा से ही प्राप्त हुआ है।
    4. त्वमेव सर्वं मम देव देव:
      इस पंक्ति में भक्त भगवान से कहता है, “हे देवों के देव, आप ही मेरे सब कुछ हैं।” इसका अर्थ है कि भगवान ही जीवन का सार हैं, और उन्हीं से सब कुछ संभव है।

    धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

    • समर्पण और विश्वास:
      इस श्लोक का उच्चारण भक्त के भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और विश्वास को दर्शाता है। यह श्लोक बताता है कि भगवान ही जीवन के हर पहलू का आधार हैं।
    • प्रार्थना और ध्यान:
      इस श्लोक का उपयोग प्रार्थना और ध्यान के समय किया जाता है। यह श्लोक मन को स्थिर और शांत करने में सहायक होता है, जिससे भक्त भगवान के प्रति और भी अधिक समर्पित हो जाता है।
    • संस्कृति और परंपरा:
      यह श्लोक भारतीय संस्कृति और परंपरा में गहरे अर्थ रखता है। यह हर धार्मिक अनुष्ठान, पूजा, और अध्यात्मिक गतिविधि का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

    समापन:

    “त्वमेव माता च पिता त्वमेव” श्लोक भगवान के प्रति भक्त की पूर्ण निष्ठा और समर्पण को व्यक्त करता है। इस श्लोक का अर्थ समझने के बाद, इसका उच्चारण और भी प्रभावी और भावपूर्ण हो जाता है। भगवान के प्रति यह विश्वास और समर्पण जीवन में शांति, संतोष, और समृद्धि लाता है।

    “कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा” श्लोक का अर्थ और महत्व

    “कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा” श्लोक भगवान नारायण को समर्पण की भावना से भरा हुआ है। यह श्लोक हमारे शरीर, वाणी, मन, और इंद्रियों द्वारा किए गए सभी कार्यों को भगवान को समर्पित करने का संदेश देता है। यह श्लोक वैदिक और धार्मिक अनुष्ठानों में प्रमुख रूप से प्रयोग किया जाता है, विशेष रूप से पूजा और ध्यान के समय।

    श्लोक के बोल:

    कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा
    बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात
    करोमि यध्य्त सकलं परस्मै
    नारायणायेति समर्पयामि ।।

    श्लोक का अर्थ:

    1. कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा:
      इस पंक्ति में कहा गया है कि “जो कुछ भी मैं अपने शरीर (काया), वाणी (वाचा), मन (मनस), और इंद्रियों द्वारा करता हूँ,” उसे भगवान को समर्पित करता हूँ। यह संदेश देता है कि हमारे सभी कार्य, चाहे वे शारीरिक हों, वाणी से जुड़े हों, मानसिक हों या इंद्रियों द्वारा किए गए हों, सभी को भगवान के चरणों में अर्पित करना चाहिए।
    2. बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात:
      इस पंक्ति में कहा गया है कि “जो कुछ भी मैं बुद्धि (बुध्यात्मना) द्वारा करता हूँ, या जो भी मेरे स्वभाव (प्रकृति) से होता है,” उसे भी भगवान को अर्पित करता हूँ। यह पंक्ति बताती है कि हमारी बुद्धि, आत्मा, और प्रकृति से उत्पन्न होने वाले सभी कार्य भी भगवान के लिए हैं।
    3. करोमि यध्य्त सकलं परस्मै:
      इसका अर्थ है, “मैं जो कुछ भी करता हूँ, वह सब कुछ उस परमात्मा को अर्पित है।” यह पंक्ति जीवन के सभी कार्यों को परमात्मा को समर्पित करने की बात कहती है।
    4. नारायणायेति समर्पयामि:
      अंतिम पंक्ति में कहा गया है, “मैं यह सब भगवान नारायण को अर्पित करता हूँ।” यह बताता है कि हमारे जीवन के सभी कार्य भगवान नारायण को समर्पित होते हैं, चाहे वे बड़े हों या छोटे।

    धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

    • पूर्ण समर्पण:
      इस श्लोक का उच्चारण भक्त को भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना से भर देता है। यह श्लोक बताता है कि जीवन के सभी कार्य, चाहे वे शारीरिक हों, मानसिक हों, या बौद्धिक हों, सभी भगवान को समर्पित होने चाहिए।
    • आध्यात्मिक शुद्धि:
      इस श्लोक का नियमित उच्चारण करने से मन और आत्मा की शुद्धि होती है। यह श्लोक भक्त को अहंकार से मुक्त करता है और भगवान के प्रति उसकी श्रद्धा को गहराता है।
    • पूजा और ध्यान में उपयोग:
      यह श्लोक पूजा, ध्यान, और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण रूप से प्रयोग किया जाता है। इसे उच्चारण करने से भक्त की भक्ति और विश्वास और भी मजबूत होते हैं।
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    समापन:

    “कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा” श्लोक भगवान नारायण को समर्पण और पूर्णता का संदेश देता है। इस श्लोक का अर्थ समझकर, इसका उच्चारण और भी प्रभावी और आध्यात्मिक हो जाता है। यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जीवन के हर कार्य को भगवान को समर्पित कर देना ही सच्ची भक्ति और समर्पण है।

    “श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे” श्लोक का अर्थ और महत्व

    “श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे” श्लोक भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति में गाया जाता है। यह श्लोक भगवान के विभिन्न नामों का उच्चारण करते हुए उन्हें प्रणाम करता है और उनकी महिमा का गुणगान करता है। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण को गोविंद, मुरारी, नाथ, नारायण, और वासुदेव के रूप में संबोधित किया गया है। यह श्लोक भक्तों के लिए एक अद्वितीय भक्ति का प्रतीक है, जो भगवान के विभिन्न रूपों की महिमा का वर्णन करता है।

    श्लोक के बोल:

    श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव ।
    जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव
    गोविन्द दामोदर माधवेती ।।

    श्लोक का अर्थ:

    1. श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे:
      इस पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण को उनके विभिन्न नामों से पुकारा गया है—कृष्ण, गोविंद, हरे, और मुरारी। ये सभी नाम भगवान के अलग-अलग रूपों और उनकी महिमा को दर्शाते हैं। “मुरारी” का अर्थ है “मुरा राक्षस का संहार करने वाले,” और “गोविंद” का अर्थ है “गायों के रक्षक,” जबकि “हरे” भगवान की सर्वशक्तिमानता को दर्शाता है।
    2. हे नाथ नारायण वासुदेव:
      इस पंक्ति में भगवान को “नाथ,” “नारायण,” और “वासुदेव” के रूप में संबोधित किया गया है। “नाथ” का अर्थ है “स्वामी,” “नारायण” का अर्थ है “समस्त जगत के पालनहार,” और “वासुदेव” भगवान श्रीकृष्ण का एक और नाम है, जो उनके दिव्य रूप का प्रतीक है।
    3. जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव:
      इसका अर्थ है, “हे जिह्वा, इन भगवान के नामों का अमृत पान करो।” यहां भगवान के नामों को अमृत (अमरत्व का स्रोत) कहा गया है, जो हमारी आत्मा को पवित्र और संतुष्ट करता है।
    4. गोविन्द दामोदर माधवेती:
      अंत में, भगवान को “गोविंद,” “दामोदर,” और “माधव” के रूप में स्मरण किया गया है। “दामोदर” का अर्थ है “जिसे मां यशोदा ने रस्सी से बांध दिया था,” और “माधव” का अर्थ है “लक्ष्मीपति” यानी लक्ष्मी देवी के पति।

    धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

    • भक्ति और श्रद्धा:
      इस श्लोक का उच्चारण भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा को व्यक्त करता है। यह श्लोक भक्तों को भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण कर उनके दिव्य स्वरूप का अनुभव करने में मदद करता है।
    • आध्यात्मिक आनंद:
      इस श्लोक का नियमित उच्चारण करने से मन को शांति और आत्मा को आनंद मिलता है। यह श्लोक भगवान के नामों के अमृत से हमारी जिह्वा को पवित्र करता है और हमें दिव्य आनंद की अनुभूति कराता है।
    • पूजा और कीर्तन में उपयोग:
      यह श्लोक विशेष रूप से पूजा, कीर्तन, और भजन के समय गाया जाता है। भगवान के विभिन्न नामों का उच्चारण करते हुए, यह श्लोक भक्तों को भगवान के करीब लाता है।

    समापन:

    “श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे” श्लोक भगवान श्रीकृष्ण की महिमा और उनकी सर्वव्यापकता का वर्णन करता है। इस श्लोक का अर्थ समझकर, इसका उच्चारण और भी प्रभावी और आध्यात्मिक हो जाता है। यह श्लोक हमें भगवान के नामों के अमृत का पान करने और उनके दिव्य स्वरूप का अनुभव करने का अवसर प्रदान करता है।

    निष्कर्ष:

    उपरोक्त श्लोक और उनके अर्थ हमें भक्ति, समर्पण, और ईश्वर के प्रति श्रद्धा का महत्व सिखाते हैं। चाहे वह भगवान विष्णु, देवी दुर्गा, या भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति हो, इन श्लोकों के माध्यम से हम यह समझते हैं कि हमारे जीवन के सभी कार्य, विचार, और भावनाएं ईश्वर को समर्पित होनी चाहिए। ये श्लोक हमें आत्मिक शांति, संतोष, और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास की ओर प्रेरित करते हैं। पूजा, ध्यान, और कीर्तन के समय इन श्लोकों का उच्चारण न केवल हमारे मन को शुद्ध करता है, बल्कि हमें ईश्वर के साथ एक गहरा आध्यात्मिक संबंध बनाने में भी सहायक होता है। जीवन में ईश्वर की महिमा और उनके नामों का स्मरण हमारे लिए अमृत के समान है, जो हमें जीवन के हर क्षण में आनंद और शांति प्रदान करता है।

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